ShreeNathji left Bhuja Pragaty from Shri Govardhan

श्रीनाथजी का 1409 ईसवी में गिरिराज गोवर्धन से प्रकटीकरण 🙏🙏
(आज श्रावण शुक्ल पंचमी के शुभ दिवस पर श्रीजी की वाम भुजा दर्शन का विवरण)

श्रीनाथजी के रुप में श्रीराधाकृष्ण के मूल स्वरुप का प्रकटीकरण, प्रारंभिक रुप से उनकी अलौकिक भुजा का प्रकटीकरण, 1409 ईसवी (संवत 1466) में श्रावण वद त्रितीया को श्रवण नक्षत्र में रविवार को हुआ था।
जय श्री राधेकृष्ण 🙏

जब इनका प्रकटीकरण गिरिराज गोवर्धन से हुआ तब श्रीनाथजी की बायीं भुजा पर श्री राधाकृष्ण के सभी मांगलिक चिन्ह भी प्रकट हुए, इसमें श्री और स्वास्तिक का मांगलिक चिन्ह सम्मिलित है। श्री राधाकृष्ण की मूल शक्तियां हमें आशीर्वाद देने के लिए लगभग 5236 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद गिरिराज गोवर्धन से दृष्टिगत हुयीं।

यह उनके नए विलयित स्वरुप में दिव्य श्रीनाथजी के स्वरुप में हमारे सामने आयीं।

श्री कृष्ण ने इंद्र देव के अहंकार को नष्ट कर दिया एवं विश्व के समक्ष यह प्रदर्शित किया कि वह सर्वोच्च शक्तिमान हैं।
श्री कृष्ण का यह स्वरुप गोवर्धन लीला के समापन के पश्चात वापस गिरिराजजी पर स्थापित हो गया। इस प्रसिद्ध वार्ता को हिंदुओं के सभी पवित्र पुस्तकों में वर्णित किया गया है।

कलियुग में श्रीनाथजी के प्रकट होने की भविष्यवाणी का विवरण पवित्र ग्रंथ गर्ग संहिता के गिरिराज खंड में पहले ही प्रस्तुत किया गया है।
महर्षि गर्गाचार्य जी ने हजारों वर्ष पूर्व रचित गर्गसंहिता में गिरिराज खंड का भविष्य लिखा था कि कलयुग में श्री कृष्ण यहाँ प्रकट हुआ।

‘‘कलियुग के 4800 वर्षों के बाद सभी लोग यह देखेंगे कि श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत की कंदरा से निकलेंगे एवं श्रृंगार मंडल पर अपने लोकोत्तर स्वरुप का प्रदर्शन करेंगे। सभी भक्त कृष्ण के इस स्वरुप को श्रीनाथ पुकारेंगे। वह सदैव ही लीला में लीन रहेंगे एवं श्री गोवर्धन पर क्रीड़ा करेंगे”

विक्रम संवत 1466 को श्री गोवर्धननाथ का प्राकट्य श्री गिरिराज पर्वत (गोवर्धन) पर हुआ।
यह वही स्वरूप था जिस स्वरूप से प्रभु श्री कृष्ण ने इन्द्र का मान-मर्दन करने के लिए व्रजवासियों की पूजा स्वीकार की और अन्नकूट की सामग्री आरोगी थी।

श्री गोवर्धननाथजी के सम्पूर्ण स्वरूप का प्राकट्य एक साथ नहीं हुआ था पहले वाम भुजा का प्राकट्य हुआ, 🙏फिर मुखारविन्द का 🙏और कुछ समय पश्चात सम्पूर्ण स्वरूप का प्राकट्य हुआ🙏🙏

।।ऊर्ध्‍व भुजा को प्रगट्य।।
(ऊर्ध्‍व भुजा का प्रकटीकरण)

एक व्रजवासी गिरिराज पर अपनी गाय की खोज में गया, जहां पर उसे सबसे पहले इस अलौकिक भुजा का दर्शन हुआ। उसे बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि इसके पहले उसे ऐसा दर्शन कभी नहीं हुआ था।
इसलिए वह कुछ अन्य व्रजवासियों को उसका चमत्कार दिखाने के लिए वहां पर ले गया। उन सभी लोगों को दर्शन हुआ और उन लोगों ने यह अनुमान लगाया कि यह कोई देवता है जो गिरिराज से प्रकट हुआ है।

एक वृद्ध व्रजवासी ने यह विचार व्यक्त किया कि यह निश्चित रुप से श्रीकृष्ण का कोई स्वरुप है, जिन्होंने 7 दिनो तक श्री गिरिराज को उठाया था।🙇🏻‍♀️🙇🏻‍♀️
एक बार जब वर्षा बंद हो गयी, तब गिरिराजजी वापस पृथ्वी में चले गए। सभी व्रजवासियों ने इस भुजा का पूजन किया और उन्हें यह विश्वास हो गया यह निश्चित रुप से उसी समय की भुजा है।🙏🙏
प्रभु श्रीकृष्ण नीचे के केंद्र (खोह) में विश्राम करते हैं और उन्होंने उसी ऊध्र्व भुजा का एक बार पुनः दर्शन कराया है।
उन लोगों ने यह निष्कर्ष निकाला कि उन्हें इसका उत्खनन करने का प्रयास करने के विषय में नहीं सोचना चाहिए और न ही उनके दैवीय स्वरुप को निकालने का प्रयास करना चाहिए।
क्योंकि उनकी जब भी इच्छा होती है, तब वह हमें पूर्ण दर्शन प्रदान करते हैं। तब तक आइए हम ऊध्र्व भुजा की उपासना करें। (इस कथा का विस्तृत विवरण दुग्धपान चरित्र में पाया गया है)

व्रजवासियों ने विचार-विमर्श करके यह निर्णय लिया कि उस अलौकिक भुजा को दुग्ध से स्नान करा कर उस पर अक्षत, चंदन, पुष्प और तुलसी चढ़ाना चाहिए तथा उन्हें दही व फल का भोग लगाया गया।

यह दर्शन नाग पंचमी के दिन हुआ था, इसलिए प्रत्येक नाग पंचमी के अवसर पर कुछ व्रजवासी एकत्रित होकर मेले का आयोजन करते हैं। जब भी वे लोग किसी इच्छा की पूर्ति की कामना करते थे, तब वे यहां पर आकर उनको दुग्ध से स्नान कराते थे। इससे व्रजवासियों की सभी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती थी।
1478 ईसवी तक लगभग 69 वर्षों तक व्रजवासियों ने केवल दैवीय भुजा का पूजन किया। (संवत 1535)

इसी अवधि में श्री गोवर्धननाथजी उनकी लीला को पूर्ण करने की सभी सामग्रियों के साथ व्रज मंडल में गिरिराज जी से प्रकट हुए।
जय श्री गोवर्धन नाथ प्रभु 🙏🙏

जय श्री नाथ जी प्रभु 🙏🙏

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