ShreeNathji-Important dates in His Pragatya

ShreeNathji has been on Earth for a period of 606 years (Till 2015). If we add till 2019 it will be a total of 609 years.

I have tried to mark out some important dates in His Prithvi Avtaar in a chart form, as per ‘Pragatya Vaarta’.

Hope it helps to give a new perspective to His Appearance at Shri Giriraj Govardhan

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Jai ShreeNathji Prabhu!

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ShreeNathji..Sadness as He ‘sees’ the outer dimensions

ShreeNathji -श्रीनाथजी की कृपा!

आँखों में अश्रु हैं..मन में आज प्रातःकाल से कुछ खलबली है!

(A post in Hindi)
कुछ भाव जो कविता के रूप में प्रस्तुत..
लम्बी हो गयी, पढ़ें ज़रूर 🙏

प्रभु का प्राकट्य हुआ १४०९ 1409 गिरिराज कंदरा से-
५२३८ 5238 वर्ष बीतने पर, श्री राधाश्री कृष्ण एक बार फिर पधारे श्रीनाथजी स्वरूप में।

क़रीब २६० वर्ष गिरिराजजी पर व्रज वासीन से दिव्य लीला खेल करने के पश्चात,
१६६९ 1669 में श्रीनाथजी उठ चले प्रिय गिरिराज से,
एक भक्त को दिया वचन पूर्ण करने पहुँचे सिंहाड (नाथद्वारा) १६७२ 1672 में।

२ वर्ष, ४ महीने, ७ दिन वे रथ में चले,
इतना भाव था श्रीनाथजी का, अपनी भक्त और सखी अजबा के लिए;

जैसे श्री गुसाँई जी ने भविष्यवाणी करी थी, १६७२ में अटक गया (रुका) श्रीनाथजी का रथ मेवाड़ के एक पिपर के नीचे,
गंगाबाई से श्रीजी ने संदेश पहुँचाया;
“यह, मेरी प्रिय भक्त अजब की जगह है, बनाओ मेरी हवेली यहीं पर;
रहूँगा कई अरसे तक यहाँ,पूरा होगा मेरी प्रिय अजबा को दिया वचन,
तुम सब भी अवस्था अपनी करो यहीं अग़ल बग़ल।

हवेली बनी शानदार, एक दिव्य गोलोक ठाकुर बालक के लायक,
सभी व्यवस्था और सेवा, शुरू हुई, श्री गुसाँई जी के बताए अनुसार।

इतिहास बताता है, आख़िरी संवाद हुआ गंगा बाई के साथ।
शुशुप्त हो गयी शक्ति फिर-
बाहरी लीला खेल पृथ्वी वासी से शायद पूर्ण हो गए, प्रभु भी कुछ काल को भीतर समा गए।
सैकड़ों वर्ष यूँ ही बीते और एक बार फिर वक़्त आया दिव्य बालक श्रीनाथजी प्रभु के जागने का,
और गोलोक में मची हलचल;
भेजा अंश पृथ्वी लोक को इस आदेश के साथ, ‘जाओ लीला पूर्ण हो ऐसे करो श्रीजी की मदद’

अंश ख़ुद को पहचाने, फिर प्रभु को जागता है, ‘चलो ठाकुरजी समय आ गया, वापस हमें चलना है,
जल्दी जल्दी लीला पूर्ण कर लो, गोलोक को प्रस्थान करना है।

नन्हें से बालक हमारे प्यारे प्रभु श्रीजी जागे जो वर्षों से हो गए थे गुप्त!
“अरे, कहाँ गए मेरे नंद बाबा, यशोदा मैया, मुझे यहाँ छोड़ व्रज वासी सखा हो गए कहाँ लुप्त”?

अंश ने विनम्रता से समझाया, हाथ जोड़ प्रभु को याद दिलाया, ‘श्रीजी बाबा, समय आ गया गोलोक वापस पधारना है,
पृथ्वी के जो कार्य अधूरे हैं, पूर्ण कर वापस हमें चले जाना है’।

किंतु, नन्हें ठाकुरजी बाहर आकर रह गए आश्चर्य चकित;
” मेरी हवेली इतनी शानदार होती थी, ये क्या हुआ,
इतनी टूटी फूटी कैसे हो गयी, कितना अपवित्र वातावरण है!
और यह कौन पृथ्वी वासी हैं जो मेरे उपर दुकानें लगा कर बैठे हैं,
क्या लोग भूल गए अंदर किसका वास है”

श्रीनाथजी प्रभु को समझने में कुछ वक़्त लग गया,
और अंश को बताना ही पड़ा,
‘प्रभु कुछ भाव में कमी आ गयी है, इन्हें माफ़ कर दीजिए,
सूझ बूझ हर इंसान की लालच के कारण कम हो गयी है,
उन्हें उनके कर्मों पर छोड़ दीजिए;
हमें कई कार्य पूरे करने हैं उसमें आप हमारा मार्गदर्शन कीजिए’.

‘गिरिराज गोवर्धन कर रहा है आपका इंतज़ार,
लीला के शुशुप्त अंश सर झुकाए आपके दर्शन को तरस रहे हैं इतने साल;
श्रीजी, शुरू करो प्रस्थान,
ऐसा हमें तरीक़ा सुझाएँ किसी का ना हो नुक़सान’;

श्रीजी पहुँचे गिरिराज जी पर,
किंतु यह क्या!
“यहाँ भी यही हालात हैं, गोवर्धन को भी नहीं छोड़ा
इन पृथ्वी वासी ने मेरे गिरिराज को भी क़ब्ज़ा कर इतना अपवित्र कर दिया;
चलो, मेरे गोलोक अंश चलो, मैं तुम्हें बताता हूँ,
मुझे भी अब जल्द से जल्द पृथ्वी से प्रस्थान करना है,
व्रज वासी हो, या फिर नाथद्वारा वासी;
लालच ने आँख पे पर्दा डाल दिया है,
जब पवित्रता ही नहीं भाव में, यहाँ अब मेरी ज़रूरत नहीं;
इन्हें रुपया बटोरने दो
मुझे यहाँ से मुक्त कर मेरे गोलोक वापस ले चलो”।

🙏 आभा शाहरा श्यामा
श्रीजी प्रभु की सेवा में, हमेशा

श्रीनाथजी को ६०९ (609) वर्ष बीत गए,
श्रीनाथजी बाबा हम पृथ्वी वासी पर कृपा करे हुए हैं!

ShreeNathji ‘Appeared’ from Shri govardhan with ShreeRadhaKrishn merged within Him

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ShreeNathji ‘Live Varta’-ShreeNathji kripa at Girirajji Govardhan in Adhik month

ShreeNathji ‘Live Varta’-ShreeNathji kripa at Girirajji Govardhan in Adhik month

श्रीनाथजी, “मेरी मर्ज़ी थी, मेरे चहेते सुधीर और आभा गोवर्धन आ रहे हैं, उन्हें प्रसाद देना था”

1st June 2018 @ Giriraj Govardhan

१ जून २०१८ हम श्री गोवर्धन के लिए मुंबई से निकले। क़रीब १२.३०/१ बजे दोपहर को आश्रम पर पहुँच जाते हैं।
गरमी बहुत ज़्यादा है, क़रीब ४३-४५* होगा।

आश्रम के सामने गिरिराज जी के दर्शन करते हैं, प्रणाम करते हैं।
जैसे ही हम समान वैगरह रख देते हैं, गुरुश्री की आज्ञा होती है की हमें मुखारविंद पर जाना है।
आभा, “इतनी गरमी में, ४५* हो रहा है, क्या हम शाम के वक़्त चल सकते हैं”?
गुरुश्री, “कुछ ज़रूरी काम है, श्रीनाथजी को कुछ अर्पण करना है”; और वे उनके बैगिज में से एक प्लास्टिक की डब्बी दिखाते हैं, जो मुंबई से बहुत ही संभाल कर लाए हैं।
लेकिन बहुत बार पूछने पर भी मुझे नहीं बताते हैं, क्या लाए हैं।

गुरुश्री, “ कुछ श्रीजी का काम है जो हमें जल्द से जल्द पूरा करना है।चलो मैं उनसे पूछता हूँ की क्या हम शाम के वक़्त जा सकते हैं”?
पूछने पर श्रीजी मान जाते हैं और हम ५ बजे जाने का विचार करते हैं, स्नान, भोजन करके कुछ देर आराम करते हैं।

शाम ५ बजे स्नान करने के बाद हम परिक्रमा मार्ग से मुखारविंद दर्शन के लिए चलते हैं। अधिक महीना होने से बहुत भीड़ है, इतनी गरमी के बावजूद।
बहुत ही संभाल कर रखी हुई डब्बी को मेरे हाथ में देते हुए गुरुश्री आदेश देते हैं, “सीधे श्रीजी के मुखारविंद के पास इसे भोग के लिए रखो, खोलना नहीं और किसी से कुछ बोलना नहीं। हाथ से ढक कर श्रीजी को अर्पण करो और चुपचाप से वापस ले आओ”।
बहुत ही भीड़ होने के कारण धक्का मुक्की में ५-१० मिनट लग जाते है; मैं पूर्ण भाव से यह कार्य पूरा करती हूँ, और श्रीजी के चरण के पास जो सेवक बैठते हैं उनके परात में सेवकी भी धरती हूँ।
डब्बी लेकर गुरुश्री को लौटा देती हूँ, जो दूर खड़े देख रहे थे, वे चुपचाप उसी रूमाल में ढक कर रख लेते हैं; अभी तक मुझे ज्ञान नहीं है उस डब्बी में कौन सी क़ीमती सामान रखा है। कभी पूछती भी नहीं हूँ क्योंकि श्रीनाथजी के बहुत से कार्य शांति से चुपचाप करने होते हैं।
मुझे कहाँ मालूम है इस समय, की यह श्रीनाथजी की इतनी कृपा है हम लोगों पर!

(अर्पण करके हम लौटते हैं तब के २ फ़ोटो भी रखे हैं, जो गिगिराज जी के साथ लिए हैं; समय है ६.१३ शाम को)

आश्रम पर लौटने के बाद, आख़िर कर गुरुश्री संभाल कर उस डब्बी को खोलते हैं, उस में सिल्वर फ़ोईल (silver foil) में कुछ रखा है। अभी तक मैं सोच रही हूँ की कुछ श्रीनाथजी प्रभु के पूजन की सामग्री है।

( यह लिखते हुए मैं उसी पल में कुछ देर के लिए खो गयी; कोशिश कर रही हूँ सही शब्द ढूँढ ने की जो उस पल का सही वर्णन कर सके; जब गुरुश्री ने रूमाल में से डब्बी निकाली और उसमें रखे हुए foil में बंद सामग्री को खोला। किंतु बहुत ही मुश्किल है ऐसी कृपा और ठाकुरजी के दुलार को शब्द देना; हम सिर्फ़ महसूस कर सकते हैं, आप जो भी भक्त इसे पढ़ रहे होंगे माफ़ी चाहती हूँ, पूरी तरह से लिखने के लिए शब्द नहीं मिल रहे 🙏)

वार्ता को आगे बढ़ाते हुए;
गुरुश्री foil को खोलते हैं, मेरी उत्सुकता बहुत ही ज़ोरदार है; और उस foil में से ५ बीड़ा (paan beeda triangle) निकलते हैं, जो श्रीनाथजी प्रभु को उनकी सेवा में सभी मंदिर में रखे जाते हैं।
मुझे थोड़ा आश्चर्य होता है; गुरुश्री उसमें से एक बीड़ा मुझे देते हैं और स्वयं एक लेते हैं, बाक़ी ३ रात्रि भोजन के बाद लेंगे।

अब यह बीड़ा में ऐसी कौन सी बड़ी बात है, आप सोच रहे होंगे!
यह बीड़ा क्यों आया और कहाँ से आया, आगे विस्तार से बताती हूँ।

अगर आप फ़ोटो देखेंगे तो उसमें सिर्फ़ ३ बीड़े हैं। २ हम प्रसाद के रूप में ले चुके हैं।
फिर ३ की फ़ोटो क्यों ली? सभी ५ की ही ले लेते?

हम ने श्रीजी को याद करके बीड़े का प्रसाद लिया था, तो उसी पल श्रीनाथजी पधारते हैं;
“कैसा लगा मेरा बीड़ा, तेरे लिए कांदीवली से ले कर आए हैं”।

मुझे आश्चर्य होता है, इस बीड़े में श्रीनाथजी का क्या खेल है?

आभा, “श्रीजी बहुत ही निराला स्वादिष्ट बीड़े हैं; हम अभी आपको भोग धर के ही आए हैं”
श्रीजी, “मुझे मालूम है, सुधीर ने मुझे बोला था चलने के लिए; तू जब मुखारविंद पर धर रही थी मैं तेरे साथ ही था, वापिस भी तुम दोनों के साथ आया, देख रहा था क्या करते हो”। “अब यह जो तीन बीड़े बचे हैं, उनकी फ़ोटो ले ले जल्दी से; बाक़ी के प्रसाद भोजन के बाद लेना”।

और जो फ़ोटो उस समय लेकर रखा है, ये वही फ़ोटो है।
अब यह क्या खेल है, क्यों मुंबई से ५ बीड़ा लेकर गोवर्धन पर भोग धरा, गुरुश्री क्यों इतना संभाल कर रख रहे थे?

श्रीनाथजी का खेल उन के और गुरुश्री के शब्द में

“कल, (३१.०५.३०१८) शाम को सुधीर और मैं कांदीवली गोवर्धन नाथ हवेली गए थे, मैं सुधीर को ले कर गया था, ‘चल शयन दर्शन करते हैं’; और दर्शन के बाद सुधीर को आदेश दिया वहाँ से बीड़ा माँग ले। सुबह आभा को देंगे”।

( बहुत बार होता है श्रीजी और गुरुश्री मेरे लिए बीड़ा का प्रसाद लाते है सुबह एर्पोर्ट पर; क्योंकि बीड़ा मुझे बहुत ही पसंद है; नाथद्वारा में भी बहुत बार श्रीनाथजी मुझे बीड़ा दिलवाते हैं)

किंतु उस दिन बड़े पाट पर दर्शन था तो भोग अलग होता है और बीड़ा नहीं देते हैं।
गुरुश्री, “श्रीजी आज तो प्रसाद में बीड़ा नहीं मिल सकता, कैसे देगा, फल का प्रसाद है”
श्रीनाथजी, “अरे तू जाकर माँग तो सही शायद दे दे”।
गुरुश्री, श्रीनाथजी की आज्ञा मानकर कहते हैं, “ठीक है श्रीजी आप कहते हैं तो माँग लेता हूँ”; और श्री गजेंद्र भाई, (जो वहाँ पर मैनेजर की सेवा देते हैं) से बीड़ा माँगते हैं, “हमें बीड़ा दे सकते हैं क्या आज”,
किंतु वह मना करते है, की शयन आरती हो चुकी है, आज बीड़ा का प्रसाद नहीं है, सुबह मंगला में श्रीजी को प्रसाद धरने के बाद ही मिल सकेगा।
गुरुश्री उन्हें समझाते हैं की वे कल सुबह नहीं आ सकते हैं क्योंकि ५ बजे की फ़्लाइट से गोवर्धन जा रहे हैं। लेकिन बीड़ा अभी कैसे दे सकते हैं, भोग नहीं लगा है।

तब गुरुश्री श्रीनाथजी को समझाने की कोशिश करते हैं की आज beeda मिलना मुश्किल है, किंतु ठाकुरजी कहाँ मानने वाले हैं, उनकी भी ज़िद होती है, “तू जा, जा, उसे कह की सुबह के लिए जो बना कर रखे हैं उसमें से ५ दे दे; हम गोवर्धन जा रहे हैं सुबह और वहाँ मुखारविंद पर चढ़ाने हैं श्रीजी की सेवा में, श्रीनाथजी और श्री गोवर्धन नाथजी एक ही तो हैं ”।

गुरुश्री, श्रीनाथजी की आज्ञा मानकर फिर श्री गजेंद्र भाई के पास जाते हैं और उन्हें विस्तार से बताते हैं। सुनकर गजेंद्र जी गुरुश्री से कहते हैं की वे मुखियाजी से बात करें, वो ही बता पाएँगे।
तब गुरुश्री और श्रीनाथजी मुखियाजी के पास जाते हैं, “हमें ५ बीड़े चाहिए, सुबह गोवर्धन के लिए रवाना हो रहे हैं, वहाँ मुखारविंद पर धरने हैं”।
श्रीनाथजी के समझाने अनुसार जब गुरुश्री ने मुखियाजी को बताया की वे बीड़ा श्री गोवर्धन पर ठाकुरजी को भोग धरने के लिए माँग रहे हैं, श्रीनाथजी की प्रेरणा हुई और मुखियाजी समझ गए और कहा, “ठीक बात है, श्रीनाथजी के लिए ही बना कर रखे हैं, अगर आप गोवर्धन पर भोग धरेंगे तो बहुत अच्छी बात है”।

और मुखियाजी ने बहुत ख़ुशी से ५ बीड़े गुरुश्री को दे दिए। उन्हें सुनकर ख़ुशी थी की श्री गोवर्धन पर ठाकुरजी उनके हाथ से बने बीड़े आरोगेंगे।
गुरुश्री आज्ञा अनुसार उन बीड़े को संभाल कर रख दिया, संभाल कर गोवर्धन पर लाए, और मुझे दिए मुखारविंद पर भोग धरने के लिए!
आश्रम पर, भोग धरने के बाद जब खोला तो वे बिलकुल ताज़ा थे।

श्रीनाथजी, “मेरी मर्ज़ी थी, मेरे चहेते सुधीर और आभा गोवर्धन आ रहे हैं, उन्हें प्रसाद देना था, तो मेरी आज्ञा से इसने माँग लिया; इसी को आशीर्वाद कहते हैं,
सवाल बीड़े का नहीं था, भक्त को आनंद कराना close friend को ख़ुशी देना.”

श्रीनाथजी का खेलने का भाव, गुरुश्री का सहयोग करने का भाव, (श्रीजी के कहने पर, गुरुश्री ने गुप्त रखा और अंत तक मुझे नहीं बताया की दब्बी में क्या है)

जय हो प्रभु, आपके प्यार और दुलार भक्तों के लिए बहुत बड़ा आशीर्वाद होता है!

और फिर आज्ञा देना, जाओ मेरे खेल को भक्तों के बीच उजागर कर दो, यह कृपा को कोई समझ सके तो उसका उद्धार हो जाता है!

ईश्वर किसी के माध्यम से कुछ माँग लेते हैं,
प्रेरणा देते हैं, जैसे मुखियाज़ी को दी,

गुरुश्री मुझ से कहते हैं, “तुम्हारे सर पे चार हाथ हैं, मैं तो सिर्फ़ निमित मात्र बना था”

(ShreeNathji, “It was My desire, My favourite Sudhir and Abha are coming to Govardhan, I wished to give My Prasad to them, so with my order Sudhir asked for the Beedas; this is called Blessings;
Its not just about the beedas, it is of giving Joy to My bhakt, My close and only friend”.
ShreeNathji’s desire of Play, gurushree’s bhao of participation, (with Shree’s order, Gurushree did not disclose to me what was in the silver foil kept in the plastic box)
Jai ho Prabhu, Your Love for Your bhakts is a blessing for them!
And then You give the divine order to open this divine varta for all bhakts, it is a huge blessing and kripa for those who are able to understand!
Gurushree tells me, “You have ShreeNathji’s four hands on your head, I am just a nimit for His kripa and Love”.)

कुछ भूल हो लिखने में तो क्षमा चाहती हूँ
जय श्रीनाथजी, जय श्री राधा कृष्ण

🙏 सर्व शांति, शुभ मंगल हो !

Many more vaartas on our website:shreenathjibhakti.org

 The divine Paan Beedas given to me as a prasad

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Giriraj Govardhan at Vraj Mandal:

Importance of Chaturmaas:(Four Monsoon months)

Giriraj Govardhan at Vraj Mandal:
बारिश का मौसम गिरिराज जी को मन मोहक बना देता है।

Importance of Chaturmaas, in ShreeNathji Yatra from Shri Govardhan to Shri Nathdwara in 1672 AD

..The journey to Mewar, as desired by Thakurjee, began in 1669 AD, on Asadh Sud Punam on Friday, during the last 3 hours of the night. ShreeNathji with all His sevaks arrived in Sinhad (Nathdwara) in 1672 AD, on Falgun Vad Satam on Saturday.

Since He began travel from Giriraj to Nathdwara, ShreeNathji spent three Chaturmaas on the way.

The first Chaturmaas was spent at Krishnpur in Dandoti Ghat, near the Chambal river.

The second Chaturmaas was in Krishnbilaas at Kota. (He halted here for four months).

The third Chaturmaas was spent in Chapaseni at Jodhpur. He also celebrated an Annakut here. Halt here was roughly for five months.

The fourth Chaturmaas ShreeNathji was at His mandir in Mewar.

For 2 years, 4 months and 7 days that ShreeNathji travelled from Vraj to Mewar, He spent living in His Rath.

The places blessed by Him along the way were, Hindmultan, Dandotighat, Bundi, Kota, Dhundhar, Marwad, Baanswaro, Dungarpur, Shahpura.

Neel Gai on Girirajji
Monsoon magic

🙏 Jai ShreeNathji
Jai Girirajji Govardhan

Complete story is on our website: http://www.shreenathjibhakti.org

Neel Gai on Girirajji 
Monsoon magic

‘Live’ Holi varta with ShreeNathji Thakurjee

‘Live’ Holi varta with ShreeNathji
2.03.2018

अदृश्यमान होली के रंग, श्रीजी के संग

 

कुछ दिनों से हम (गुरुश्री, श्रीजी और मैं) गिरिराज जी पर हैं। होली दहन के दिन श्रीजी कुछ समय हमारे ही साथ खेल रहे थे। फिर bye bye कर के चले गए, ये कह कर की होली का दहन है, उन्हें कुछ ज़रूरी काम है।

मैं भी आज जल्दी सो गयी थी।
श्रीजी को याद करके, और गिरिराज जी को प्रणाम कर, जप करते करते आँख लग गयी।
अचानक ऐसा लगा जैसे की मैं गुलाल के ढेर में डूब रही हूँ। घबरा कर मेरे श्रीजी को ढूँढती हूँ, उन्हें आवाज़ देती हूँ. “देखो ना श्रीजी, चारों तरफ़ रंग ही रंग हो गया, गुलाल में कमर तक डूब गयी हूँ, निकलने की कोशिश करती हूँ तो और गहरी डूब जाती हूँ; अरे श्रीजी कहाँ हो, थोड़ी मदद करीए ना, इस गुलाल के ढेर से बाहर निकालो ना”।
श्रीजी की हँसती हुई गूँज सुनती है,
“अच्छा, अच्छा; मैं मदद करूँ? आभा शाहरा श्यामॉ, लो मेरा हाथ पकड़ो”
मैंने कस के हाथ पकड़ा और श्रीजी ने बाहर खींच लिया। लेकिन यह क्या! बाहर भी चारों तरफ़ गुलाल उड़ने लगा, और श्रीजी भी ग़ायब हो गए।

पुकारने पर श्रीजी की मधुर आवाज़ फिर सुनती है,
“आभा शाहरा श्यामॉ, शायद तू तो मानसिक भाव से रंग खेल रही है, यहाँ गुलाल है ही किधर, अदृश्यमान द्रश्य में खो कर स्वप्न देख रही है तू”।
“जिसके अंदर आभा फूलती(प्रकाश मान)हो, अद्रश्यमान प्रगट होती हो, तुझे होली के रंग (सप्त रंग) की कहाँ ज़रूरत है”।
“शुद्ध, सात्त्विक, प्रगटमान आभा है तू, मेरे रंगों में पूर्ण रूप से हमेशा रंगी रहती है, शुद्धि का रंग तुझ में भरा है; बाहरी रंग की ज़रूरत नहीं है तुझे।
जा अपने आनंद में रह, मेरे भाव की मस्ती के रंगों में हमेशा भरी रहेगी तू, भूल जा बाक़ी सब कैसे होली मनाते हैं।
देख चारों तरफ़ गोवर्धन पर रंग ही रंग भर दिए हैं लोगों ने, कोई बात नहीं।

तू अपनी मानसिक यात्रा में होली के रंग खेलते खेलते अब जाग जा”।

और मैं जाग गयी, देखा तो सुबह के चार बजे थे। जैसे की मेरी आदत है, मैंने जल्दी से श्रीजी के शब्द पुस्तक में लिख लिए।

बाद में गुरुश्री को यह वार्ता सुनाई। उन्हें भी बड़ा आनंद आया। उन ने श्रीजी से आज्ञा ली, फिर लेकर मुझे कहा की इसे और भक्तों के साथ share करूँ। आनंद को बाँटूँ।

इसलिए मेरे गुरुश्री और महा गुरुश्री की आज्ञा से आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर रही हूँ।

शब्द श्रीनाथजी प्रभु के ही हैं।

कुछ भूल हो गयी हो प्रस्तुत करने में तो क्षमा करें
जय हो प्रभु 🙏
(तस्वीर श्रीनाथजी मुखारविंद की है)

Holi being played at ShreeNathji Mukharwind, Jatipura – Shri Govardhan

Giriraj Govardhan-Tongue at Radha\Shyam Kund

ShreeNathji, Shree Giriraj Govardhan

जीवहा मंदिर, राधा कुंड पर: Jihva (Shri Giriraj tongue) mandir at Radha Kund

राधा कुंड के इस मंदिर को गिरिराज जी की जीवहा (जीब, tongue)मानते हैं।

यह शिला जो आप देख रहे हैं, गिरिराज जी की पवित्र शिला है।

इसके पीछे एक वार्ता है:

श्री रघुनाथ दास स्वामी को एक कुआँ खोदना था, तो उन्होंने काम चालू करवाया। मज़दूर जब खुदाई कर रहे थे, उनका औज़ार एक शिला पर लगा जिस के कारण उस शिला से ख़ून बहने लगा।

खुदाई तुरंत बंद कर दी गई।

उसी रात स्वप्न में श्री कृष्ण ने श्री रघुनाथ स्वामी को बताया, “मैं गोवर्धन से अलग नहीं हूँ, यह शिला गिरिराज की जीभ है, उसे निकाल कर मंदिर में बिठाओ और पूजन शुरू करो।

राधा कुंड के जल से सेवा करो

यह वही प्राचीन मंदिर है; गिरिराज जी की हर शिला पवित्र और दिव्य है।

गिरिराज महाराज की जय हो!

श्रीनाथजी ठाकुरजी की जय

श्री राधा कृष्ण की जय

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श्रीनाथजी प्रभु व्रज में पूर्ण रूप से पधारेंगे ShreeNathji-Return to Vraj

                                                                                          जय श्रीनाथजी प्रभु, आप जल्द व्रज में पूर्ण रूप से एक बार फिर वास करेंगे; बहुत कृपा आपकी🙏

 “Jai ho ShreeNathji”
When You return to Vraj very soon, this is what Girirajji will feel like.

Your Dhajaji will fly on Shri Govardhan, though unseen to the world. Visible only to Your chosen bhakts.


Your Presence will again bring to life the dormant urjas and vibrations of several hundred years ago.

 ।। श्री गोवर्धननाथ स्योद्धववार्ता ।।
अर्थात्
।। श्रीनाथजी की प्राकट्य वार्ता ।।

यह ३ वाक़या जो इस पोस्ट में लिखे हैं, श्रीनाथजी की प्राचीन पुस्तक से लिए हैं.

तीन जगह उल्ल्लेख है की श्रीनाथजी व्रज जल्द ही पधारने वाले हैं.
हो सकता है की श्रीजी ने इसके लिए पूर्ण तय्यारी भी कर ली होगी, अपने किसी भक्त और सेवक के साथ.

जय हो श्रीजी, जय श्री गोवर्धननाथजी
आपकी

आभा शाहरा श्यामॉ

कुछ भूल हुई तो क्षमा करिए
श्रीनाथजी के बहुत से नटखट दिव्य खेल और लीला
“आज के वक़्त में”,
इस लिंक पर पढ़ सकते हैं:

http://www.shreenathjibhakti.org

 

We all wait to welcome YOU SHREEJI, back to YOUR ORIGINAL DHAM AND YOUR REAL HOME:
“SHRI GIRIRAJ GOVARDHAN”.
YOU TOO MUST HAVE MISSED BEING HERE WITH YOUR BELOVED CHOSEN BHAKTS AND SHAKTIS.

ShreeNathji – Most pavitra, divine leela bhumis

The most pavitra and Divya Sthals in this world: 

A panoramic collage view.

ShreeNathji’s Haveli at Nathdwara,
His Old Haveli at Ghasiyar,
His most favorite Gaushala at Nathdwara,
His Pragataya Bhumi, Giriraj Govardhan,where He will return very soon.

ShreeNathji ki Jai Ho

Shreeji Ki Jai Ho!

ShreeNathji Sakshat darshans website

Our new website that has been launched is about Giriraj Govardhan and ShreeNathji.

As per ShreeNathji’s Hukum, we have been able to make public His Shakshatkar Darshans by sharing this divine Sakshatkar photo of His leela, which took place on His Sacred Mukharwind at Shri Govardhan in 2005.

Shreeji, in His love for His bhakts world wide, has now desired to reward His bhakts with HIS LALAN SWAROOP DARSHANS. 
The photographs of the Divya Darshans from Shreeji Mukharwind at Jatipura, which we were given in 2005 is now being made public, as per His desire.
The photos are totally authentic as taken at the time of pujan and not tampered with in any way. 

Once you read the Varta and see the photos, you will believe that our beloved Thakurjee, SHREENATHJI, SHREE GOVARDHANNATHJI, yet does His Divine Leela and Play in the outer world.

PLEASE DO A BIG FAVOUR FOR YOURSELF AND LOG ON TO THE WEBSITE.
RECEIVE SHREEJI’S BLESSINGS FOR YOURSELF AND YOUR FAMILY ON THIS AUSPICIOUS DAY AND EVERY DAY HENCEFORTH.

Do share this link on all your pages so that Thakurjee’s blessings spread all over the world.
Help in ShreeNathji’s sewa by spreading His Darshans. Become a link for Shreeji and His bhakts

www.govardhan.org.in

Wish you all a very happy and blessed new year
Abha Shahra Shyama

Shreeji ki Jai Ho!
Thank You for all Your Kripa on Your bhakts

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