Stop using leather if you are a Vaishnav

For all Vaishnavs, “Do you do seva of Shree Thakurjee  and  Gaumata”

Then stop using leather

सभी वैष्णव के लिए; “श्री ठाकुरजी और गौमता की सेवा और पूजन करते हैं?”

चमड़ा इस्तेमाल करना बंद कीजिए

The Indian Vedic Cow, known as gaumata is the original Cow about which is spoken in all our scriptures.

Hinduism has no place for cruelty to animals and eating of corpses. Humanity does not propagate farming of animals for human consumption.

Our environment needs to be purified; as well as our human body, to enable any rise in consciousness within ourself or on Earth vibration level.

गौमता

सभी वैष्णव के लिए; “गौमता की सेवा और पूजन करते हैं?”

श्रीनाथजी हवेली नाथद्वारा के बाहर लिखा रहता है;

चमड़ा पहन कर भीतर नहीं जायें

कभी सोचा है क्यों?Abha Shahra

ShreeNathji Haveli at Nathdwara

ShreeNathji Haveli main entrance at Nathdwara – where it is written; to remove leather belts before entering the premises

चमड़ा किसी मरे हुए जानवर की खाल है। ठाकुरजी के शुद्धि नियम अनुसार इससे अशुद्धि होती है।

हमारा शरीर जब मरे हुए जानवर की खाल पहनता है या उपयोग में लेता है, तो अशुद्धि में होता है।

दूसरी सच्चाई यह है की अधिकतम चमड़ा गौमाता से बनाया हुआ होता है।

हम अगर वैष्णव हिंदू हैं तो ज़रूर गाय की सेवा और पूजा करते हैं।

फिर हम उसी मरी हुई गाय की वस्तु का इस्तेमाल करते हैं।

गौ की सेवा, श्रीनाथजी की सेवा, श्री राधा कृष्ण की सेवा, पूजा करते हैं, और दूसरी तरफ़, उन्ही की गौमता (या अन्य जानवर) को मारकर बनाई हुई वस्तु का इस्तेमाल भी करते हैं?

यह सच्चाई हमारे धर्म और भक्ति से जुडी है.

दूसरी सच्चाई, अगर इंसानियत के अनुसार देखें; की किस तरह से गौमता (या कोई भी जानवर) को तड़पाकर यह चमड़ा निकालते हैं, तो आपकी आत्मा भी काँप जाएगी.

जितनी कोमल गाय का बछड़ा, उतनी क़ीमती उसकी खाल होती है.Abha Shahra

Young calves are used to make the most expensive leather products

Young calves are used for making the most expensive leather products

आप चाहें तोयूटूब (U Tube)’ पर गाय से उसकी खाल निकलना और उससे वस्तु कैसे बनती है; उसका प्रॉसेस देख सकते हैं।

(लिंक देने की ज़रूरत नहीं समझती हूँ, क्योंकि बहुत आसानी से आप ढूँढ सकते हैं)

१४ साल पहले जब सत्य मैंने समझा, तभी से चमड़े की बनी वस्तुएं का इस्तेमाल बंद कर दिया है. इसके पहले मुझे भी बहुत शौक था चमड़े के डिज़ाइनर बैग और जूते चप्पल पहनने का.

आज बाजार में अच्छी क्वालिटी चमड़ा रहित चप्पल, जूते, पर्स, वॉलेट, बेल्ट, सोफ़ा, कुर्सी आदि मिलने लगे हैं.

चमड़े का इस्तेमाल बंद करके हम चाहें तो अपने जीवन में शुद्धि बढ़ा सकते हैं.

जब शारीरिक शुद्धि बढ़ेगी तो भाव शुद्धि में भी बढौती होगी.

भाव शुद्धि जितनी बढ़ेगी, हम उतना ज्यादा ठाकुरजी के करीब अपने आपको पाएंगे.untitled-11-2

हम इतने अंधकार में कैसे जी सकते हैं?

जय हो प्रभु किहमें सदबुद्धि मिले

ठाकुरजी, श्रीनाथजी बाबा की जय हो!

(अगर आप इस बात से सहमत हैं, तो कृपया पोस्ट को शेयर करिये.

मेरा अनुभव है की ज्यादातर लोग बहुत बार बिना सोचे समझे कुछ करते रहते हैं; जैसे की चमड़े का इस्तेमाल करना.

बहुत से लोग इस्तेमाल कर रहे है क्योंकि सच्चाई को कभी ध्यान नहीं दिया.

इन वैष्णव की आँख खुलने के बाद शायद चमड़ा इस्तेमाल बंद कर दें. उनकी मदद करिये).

धन्यवाद आप सभी को, जय श्रीकृष्ण!

(किसी ने कामेंट्स में पूछा की मैंने सिर्फ़ गौमता क्यों लिखा, सभी जानवर की खाल से वस्तु बनती है, उसका जवाब मेरी समझ में:

इस पोस्ट में दो बातें हैं.

पहली, की जो माँसाहारी हैं, उनका भोजन ही जानवर से बनता है, इसलिए वे ऊपर से शरीर पर कुछ भी पहने, एक ही बात है.

तो अगर मैं उनसे कहूँ की आप चमड़ा नहीं पहनिए, तो ना इंसाफ़ी होगी, क्योंकि जो भोजन वे करते है, उसे पहनने में कुछ ग़लत नहीं है.

सभी जानवर की खाल से चमड़ा बनता है, क्रूरता से, लेकिन माँसाहारी भोजन भी इतनी ही क्रूरता से बनता है;

तो जब तक आप शाकाहारी नहीं होते, कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, की आप क्या पहनते हैं; और मैंने यह पोस्ट माँसाहारी इंसान को शाकाहारी बनानेके लिए नहीं लिखी.

दूसरी बात, जो भक्ति मार्ग से जुड़े हैं, वे वैष्णव कहलाते हैं, ठाकुरजी की सेवा करते हैं, और भक्ति में सात्त्विक भोजन ज़रूरी होता है. तो इन भक्तों को माँसाहारी नहीं होना चाहिए.

और अगर आप माँसाहारी नहीं हैं तो फिर चमड़ा मत पहनिए; इस पोस्ट का मेसिज यह है.

ठाकुरजी श्रीनाथजी, श्री राधा कृष्ण की सेवा और पूजन में गौ ज़रूरी है.

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इसलिए उन भक्तों की आँख खोलने के लिए लिखा है,

अगर आप शाकाहारी हैं, भक्ति में हैं, तो चमड़ा शरीर पर धारण मत कीजिए.

बाक़ी सभी जानवर को क्रूरता से बचाना ज़रूरी है, वह कोई और पोस्ट में लिखूँगी)

धन्यवाद. 🙏

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Shree RadhaKrishn-Supreme Divine Love

The Upnishad says:

 

“Whatever is ShreeRadha, same is ShreeKrishn and whatever is ShreeKrishn, same is ShreeRadha.

Both ShreeRadha and ShreeKrishn worship each other, as ShreeRadha is the soul of ShreeKrishn and ShreeKrishn is the Beloved of ShreeRadha.

They are both one, like two flames of the same fire of Supreme divine love.

 

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(The painting of Shree RadhaKrishn used here is from ShreeNathji Gaushala at Nathdwara. As it has been in the open for several years, it looks very ancient and a little weathered. Yet I wished to use it here as I have a lot of devotion to this extremely divya place, where ShreeNathji visits every day).