ShreeNathji Mukharvind Pragatya

(To read the post in English please go to link)

https://www.shreenathjibhakti.org/post/shreenathji-appearance-from-giriraj-govardhan-in-1409-ad

वैशाक वद (कृष्ण)ग्यारस

Tuesday, 16 April 2023

               ।। मुखारविंद प्रगट्य ।।

।। श्रीनाथजी के कमल आनन का प्रगटीकरण।।

वर्तमान समय में नाथद्वारा में स्थापित श्रीनाथजी का स्वरुप (प्रतिमा) पवित्र व्रज भूमि में स्थित पावन श्री गोवर्धन पर्वत पर प्रकट हुआ था। श्रीनाथजी अपने भक्तों की दैवीय आत्माओं को जागृत करने में सहायता करने के लिए यहां पर प्रकट हुए थे।

1478 ईसवी (संवत 1535) में वैशाख वद (कृष्ण) ग्यारस के दिन शतभिषा नक्षत्र में गुरुवार के दिन अभिजीत मूहूर्त दोपहर 12.40 से 1.00 बजे के बीच, के दौरान जब उनका मुखारविंद प्रकट हुआ, उस समय उन्होंने गांव के वरदानयुक्त लोगों को अपना दिव्य दर्शन दिया।

 श्रीकृष्ण की इच्छा के अनुसार उसी दिन परंतु अभिजीत मूहूर्त अर्थात् रात्रि 12.40 से 1.00 बजे के बीच श्रीवल्लभ आचार्य भी चंपारण नामक एक अन्य गांव में आग के एक गोले में प्रकट हुए। यह गांव वहां से कुछ दूरी पर स्थित है। श्री वल्लभाचार्य उस अवधि के दिव्य गुरु थे। इस अवधि के दौरान गिरिराज गोवर्धन पर सभी मूल ग्वाल-बाल, जो वहां पर उनके मूल अवतार श्रीराधाकृष्ण के साथ उपस्थित थे, ने भी श्रीकृष्ण की लीला को पूर्णता प्रदान करने के लिए इस पृथ्वी पर जन्म लिया। इसमें उनके अष्टचाप कवि भी शामिल है। (इसका विस्तृत विवरण बाद में किया गया है)

श्रीराधाकृष्ण की प्रसिद्ध दैवीय लीलाओं में से एक लीला गिरिराज गोवर्धन को सात दिनों तक अपने बाएं हाथ की कनिष्ठिका पर सात दिनो तक उठा कर रखना सम्मिलित है। यह लीला इस बात को दर्शाती है कि किस प्रकार श्री कृष्ण ने इंद्र देव के अहंकार को नष्ट कर दिया एवं विश्व के समक्ष यह प्रदर्शित किया कि वह सर्वोच्च शक्तिमान हैं।

श्री कृष्ण का यह स्वरुप गोवर्धन लीला के समापन के पश्चात वापस गिरिराजजी पर स्थापित हो गया। इस प्रसिद्ध वार्ता को हिंदुओं के सभी पवित्र पुस्तकों में वर्णित किया गया है। 

कलियुग में श्रीनाथजी के प्रकट होने की भविष्यवाणी का विवरण पवित्र ग्रंथ गर्ग संहिता के गिरिराज खंड में पहले ही प्रस्तुत किया गया है।

‘‘कलियुग के 4800 वर्षों के बाद सभी लोग यह देखेंगे कि श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत की कंदरा से निकलेंगे एवं श्रृंगार मंडल पर अपने लोकोत्तर स्वरुप का प्रदर्शन करेंगे। सभी भक्त कृष्ण के इस स्वरुप को श्रीनाथ पुकारेंगे। वह सदैव ही लीला में लीन रहेंगे एवं श्री गोवर्धन पर क्रीड़ा करेंगे।’’

श्रीनाथजी श्री कृष्ण का वही स्वरुप है, जिसने द्वापर युग में इस लीला को मूर्त रुप प्रदान किया था। वह एक बार पुनः १४वीं शताब्दी, 1409 ईसवी में उसी गिरिराज से प्रकट हुए थे, जिसे हम आज श्रीनाथजी स्वरुप के रुप में जानते हैं।

श्रीनाथजी श्रीराधाकृष्ण के पूर्ण स्वरुप हैं। वह श्रीराधा, श्रीकृष्ण एवं उनके दोनो ललन स्वरुप को स्वयं में संजोए हुए हैं।

श्रीनाथजी ‘उनकी’ जीवंत दैवीय शक्ति हैं, जो हमारे जगत में आज भी निवास करते हैं।

इन्हें इनके भक्त प्यार से देव दमन, इंद्र दमन, नाग दमन भी कहते हैं। व्रजवासियों में प्रचलित इनका पूरा नाम ‘श्री गोवर्धननाथजी’ था।

प्रेम वत्सल भक्त इन्हें ‘श्रीजी बाबा’ भी कहते हैं।

http://www.shreenathjibhakti.org

जय हो आज के पवित्र दिवस की 🙏🙏

जय श्रीजी प्रभु 🙏🙏

जय श्री गोवर्धन नाथ 🙏🙏

जय श्री राधा कृष्ण 🙏🙏

ठीक उसी दिन वहां से सैकड़ो मील दूर चम्पारण्य (छत्तीसगढ़) में श्री वल्लाभाचार्य जी (श्री महाप्रभुजी) का भी प्राकट्य हुआ था. 

इस तस्वीर में धूमर गाय श्रीजी को दुग्ध पान करा रही है, और सद्दु पांडे और भवाई को पहले दर्शन होते हैं।

Vraj Mandal Jhanki-Fulfil longing For Drishy of Divine Bhumi-6

Vraj Mandal Jhanki-Fulfil longing For Drishy of Divine Bhumi-6

 

img_6803img_6931img_6932img_6828img_6825img_6814img_7371img_6836img_7373img_7370img_7295img_7557img_8190img_7229img_7567img_7127img_7292

Vraj Mandal Jhanki-Fulfil longing For Drishy of Divine Bhumi-5

Vraj Mandal Jhanki-Fulfil longing For Drishy of Divine Bhumi-5

 

 

img_6798

 

img_6822

img_7294

img_6838

 

img_6819img_7228img_7124img_6842img_7226img_6824img_7308img_6839img_6804img_8153img_6827img_6450

 

Vraj Mandal Jhanki-Fulfil longing For Drishy of Divine Bhumi-2

Vraj Mandal Jhanki-Fulfil longing For Drishy of Divine Bhumi-2

(A part of 21 post series)

Entry to Divine Vraj Bhumi is prohibited due to Covid-19 pandemic.

I long to be there!

And I realise that similarly there must be 1000’s of bhakts who long to place foot in Vraj.

Divine Vraj Mandal is sakshat Golok 🙏

Just so all can have darshans of the Bhumi, I’ll try and post few from my collection of several yatras over the years. A kripa from the divine shaktis of Vraj bhumi🙏

Hope all bhakts enjoy them; a kripa from Shree Radha Herself, who is the original Divine Shakti 🙏

वह भव्य, दिव्य व्रज भूमि, जो साक्षात गोलोक है,

जब नेत्र और आत्म में शुद्धता होने से आलोकिकता महसूस होने लगे,

तो समझिए श्रीनाथजी, श्री राधा कृष्ण की कृपा बरस रही है 🙏

Jai Shree RadheKrishn 🙏

Jai ShreeNathji Prabhu 🙏

Jai Vraj Bhumi

Complete Vraj Album (made for Covid times) can be viewed here on Facebook too

https://www.facebook.com/pg/abhashahrashyama/photos/?tab=album&album_id=3511763468838954

Dhanyawad 🙏

जहाँ श्री राधा कृष्ण लीला में डूब जाने को मन, शरीर, आत्मा और दिल करे, वो व्रज धाम, श्रीनाथजी ठाकुरजी की प्रिय लीला भूमि;

The photo says it all! The divine land yatra is never complete without at least one photo with beloved gaumata — at Mahalakshmi Mandir, Belvan, Vrindavan.

The photo says it all! The divine land yatra is never complete without at least one photo with beloved gaumata — at Mahalakshmi Mandir, Belvan, Vrindavan.

A peacock witnessing five Neel Gai running through Govardhan — at Goverdhan Giriraji Tehaleti Jatipura Prikrama.

A peacock witnessing five Neel Gai running through Govardhan — at Goverdhan Giriraji Tehaleti Jatipura Prikrama.

Ter Kadamb, Nandgaon Ter Kadamba is located just 1.5 km from Nandgaon

Ter Kadamb is located just 1.5 km from Nandgaon and is quite secluded. So that retains the traditional vibe of Vraj Bhumi. It is the place where Shree Krishn plays bansuri to call His 900000 cows

Vraj Mandal photos

जहाँ श्री राधा कृष्ण लीला में डूब जाने को मन, शरीर, आत्मा और दिल करे, वो व्रज धाम, श्रीनाथजी ठाकुरजी की प्रिय लीला भूमि

Vraj Mandal-Gwal Pokhar or Gopal Kund

Gwal Pokhar or Gopal Kund, about 500 metres on the right side of Govardhan parikrama. It is a small Kund located near Shyam Kuti, Govardhan.Shree Krishn, during His Gocharan time would rest here in the afternoon.

Vraj Mandal photos

Bel Van, Peelu Tree

Radha-Shyam Kund

Tatiya sthan Vraj Mandal

Gokul

Pavitr Kadamb at Vrindavan

Pavitr Kadamb at Vrindavan

Surrender

Jai ShreeNathji Prabhu 🙏

Jai Shree RadheKrishn 🙏

श्री कृष्ण चरणों में समर्पित यह जीवन यात्रा,

श्रीनाथजी ठाकुरजी की कृपा पात्र;

यहीं है आख़िरी मंज़िल इस जीव आत्म की; कहीं और भटकने की ज़रूरत अब नहीं

जय श्री राधे कृष्ण 🙏

जहाँ श्री राधा कृष्ण लीला में डूब जाने को मन, शरीर, आत्मा और दिल करे, वो व्रज धाम, श्रीनाथजी ठाकुरजी की प्रिय लीला भूमि;

The 84 Kos of Divine Land which Appeared on Earth from Golok, at the request of Shree Radha, is where this soul will find the final rest;

the merging with the Presence of Thakurjee ShreeNathji; who permanantly resides on sacred Shri Govardhan, with Shree RadhaKrishn and all His Sevaks and Gwal Bals

Jai ShreeNathji Prabhu 🙏

Jai Shree RadheKrishn 🙏

श्रीनाथजी के साक्षात्कार जून २००५ में, उनके मुखारविंद, श्री गोवर्धन

वह भव्य, दिव्य व्रज भूमि, जो साक्षात गोलोक है, नेत्र और आत्म में शुद्धता होने से आलोकिकता महसूस होने लगे, तो समझिए श्रीजी की कृपा बरस रही है 🙏

श्री राधा, श्री कृष्ण-दिव्य प्रेम के पूर्ण प्रतीक इस पृथ्वी पर हमें एहसास दिलाते हैं, जागो और मुझ में समा जाओ, श्रीनाथजी ठाकुरजी जिनके संविलीन स्वरूप आज हमारे बीच हैं 🙏

ShreeNathji-Kesar Snan

Kesar Snan at ShreeNathji mandir-ज्येष्ठाभिषेक (स्नान-यात्रा)

ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा

Monday, 17 June 2019

आज ज्येष्ठाभिषेक है जिसे केसर स्नान अथवा स्नान-यात्रा भी कहा जाता है.

Shreenathjibhakti.org

Kesar Snan@ShreeNathji

श्री नंदरायजी ने श्री ठाकुरजी का राज्याभिषेक कर उनको व्रज राजकुंवर से व्रजराज के पद पर आसीन किया, यह उसका उत्सव है.

आज के दिन ही ज्येष्ठाभिषेक स्नान का भाव एवं सवालक्ष आम अरोगाये जाने का भाव ये हे की यह स्नान ज्येष्ठ मास में चन्द्र राशि के ज्येष्ठा नक्षत्र में होता है और सामान्यतया ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को होता है.

इसी भाव से स्नान-अभिषेक के समय वेदमन्त्रों-पुरुषसूक्त का वाचन किया जाता है. वेदोक्त उत्सव होने के कारण सर्वप्रथम शंख से स्नान कराया जाता है.

ऐसा भी कहा जाता है कि व्रज में ज्येष्ठ मास में पूरे माह श्री यमुनाजी के पद, गुणगान, जल-विहार के मनोरथ आदि हुए. इसके उद्यापन स्वरुप आज प्रभु को सवालक्ष आम अरोगा कर पूर्णता की.

श्रीजी प्रभु वर्ष में विविध दिनों में चारों धाम के चारों स्वरूपों का आनंद प्रदान करते हैं.

आज ज्येष्ठाभिषेक स्नान में प्रभु श्रीजी दक्षिण के धाम रामेश्वरम (शिव स्वरूप) के भावरूप में वैष्णवों को दर्शन देते हैं जिसमें प्रभु के जूड़े (जटा) का दर्शन होता है

इसी प्रकार आगामी रथयात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ के रूप में प्रभु भक्तों पर आनंद वर्षा करेंगे.

आज कैसे सेवा की जाती है :

पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

झारीजी में सभी समय यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.

गेंद, दिवाला, चौगान आदि सभी चांदी के आते हैं.

आज मंगला दर्शन में श्रीजी को प्रतिदिन की भांति श्वेत आड़बंद धराया जाता है.

मंगला आरती के उपरांत खुले दर्शनों में ही टेरा ले लिया जाता है और अनोसर के सभी आभरण व प्रभु का आड़बंद बड़ा (हटा) कर केशर की किनारी से सुसज्जित श्वेत धोती, गाती का पटका एवं स्वर्ण के सात आभरण धराये जाते हैं.

इस उपरांत टेरा हटा लिया जाता है और प्रभु का ज्येष्ठाभिषेक प्रारंभ हो जाता है.

सर्वप्रथम ठाकुरजी को कुंकुम से तिलक व अक्षत किया जाता है. तुलसी समर्पित की जाती है.

तिलकायत जी अथवा उपस्थित गौस्वामी बालक स्नान का संकल्प लेते हैं और रजत चौकी पर चढ़कर मंत्रोच्चार, शंखनाद, झालर, घंटा आदि की मधुर ध्वनि के मध्य पिछली रात्रि के अधिवासित केशर-बरास युक्त जल से प्रभु का अभिषेक करते हैं.

सर्वप्रथम शंख से ठाकुरजी को स्नान कराया जाता है और इस दौरान पुरुषसूक्त गाये जाते हैं. पुरुषसूक्त पाठ पूर्ण होने पर स्वर्ण कलश में जल भरकर 108 बार प्रभु को स्नान कराया जाता है. इस अवधि में ज्येष्ठाभिषेक स्नान के कीर्तन गाये जाते हैं.

स्नान का कीर्तन – (राग-बिलावल)

मंगल ज्येष्ठ जेष्ठा पून्यो करत स्नान गोवर्धनधारी l

दधि और दूब मधु ले सखीरी केसरघट जल डारत प्यारी ll 1 ll

चोवा चन्दन मृगमद सौरभ सरस सुगंध कपूरन न्यारी l

अरगजा अंग अंग प्रतिलेपन कालिंदी मध्य केलि विहारी ll 2 ll

सखियन यूथयूथ मिलि छिरकत गावत तान तरंगन भारी l

केशो किशोर सकल सुखदाता श्रीवल्लभनंदनकी बलिहारी ll 3 ll

स्नान में लगभग आधा घंटे का समय लगता है और लगभग डेढ़ से दो घंटे तक दर्शन खुले रहते हैं.

दर्शन पश्चात श्रीजी मंदिर के पातलघर की पोली पर कोठरी वाले के द्वारा वैष्णवों को स्नान का जल वितरित किया जाता है.

मंगला दर्शन उपरांत श्रीजी को श्वेत मलमल का केशर के छापा वाला पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर सफ़ेद कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धराये जाते हैं.

मंगला दर्शन के पश्चात मणिकोठा और डोल तिबारी को जल से खासा कर वहां आम के भोग रखे जाते हैं. इस कारण आज श्रृंगार व ग्वाल के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को विशेष रूप से मेवाबाटी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, श्रीखण्ड भात, दहीभात, मीठी सेव, केशरयुक्त पेठा व खरबूजा की कढ़ी अरोगाये जाते हैं.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) में ही उत्सव भोग भी रखे जाते हैं जिसमें खरबूजा के बीज और चिरोंजी के लड्डू, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, घी में तला हुआ चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फलफूल, शीतल के दो हांडा, चार थाल अंकुरी (अंकुरित मूंग) आदि अरोगाये जाते हैं.

इसके अतिरिक्त आज ठाकुरजी को अंकूरी (अंकुरित मूंग) एवं फल में आम, जामुन का भोग अरोगाने का विशेष महत्व है.

मैंने पूर्व में भी बताया था कि अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को बारी-बारी से जल में भीगी (अजवायन युक्त) चने की दाल, भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं.

इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से ठाकुरजी को छुकमां मूँग (घी में पके हुए व नमक आदि मसाले से युक्त) अरोगाये जाते हैं.

(Details taken fromhttps:m.facebook.com/Shreenathjiprasad/)

राजभोग दर्शन का विस्तार

कीर्तन – (राग : सारंग)

जमुनाजल गिरिधर करत विहार ।

आसपास युवति मिल छिरकत कमलमुख चार ॥ 1 ll

काहुके कंचुकी बंद टूटे काहुके टूटे ऊर हार ।

काहुके वसन पलट मन मोहन काहु अंग न संभार ll 2 ll

काहुकी खुभी काहुकी नकवेसर काहुके बिथुरे वार ।

‘सूरदास’ प्रभु कहां लो वरनौ लीला अगम अपार ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की पिछवाई धरायी जाती है जिसमें केशर के छापा व केशर की किनार की गयी है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को श्वेत मलमल का केशर के छापा वाला पिछोड़ा धराया जाता है.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

हीरा एवं मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में बघ्घी धरायी जाती है व हांस, त्रवल नहीं धराये जाते. कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट ऊष्णकाल का व गोटी मोती की आती है.

आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

जय श्रीनाथजी प्रभु

ठाकुरजी श्री राधा कृष्ण की जय हो

🙏

Shreenathjibhakti.org

Kesar snan at ShreeNathji mandir

Shreenathjibhakti-Kesar snan at ShreeNathji mandir

ShreeNathji mandir on Giriraj Govardhan

ShreeNathji Mandir darshan on Shri Giriraj Govardhan parvat

श्रीनाथजी प्रभु का प्राचीन मंदिर, गिरिराज गोवर्धन पर।महिमा सुनिए, दिव्य दर्शन कीजिए

 

इस दुर्लभ विडीओ में देखिए मंदिर के वे दर्शन:

⁃ उस खिड़की का दर्शन कीजिए जहाँ से श्री ठाकुरजी श्री गुसाँई जी को दर्शन देते थे, अपने मंदिर से चंद्र सरोवर पर जब श्री गुसाँई जी ने ६ महीने विप्रयोग का अनुभव करा; उनकी बैठकजी है यहाँ पर

⁃ उस खिड़की का जहाँ श्रीनाथजी मोहना भंगी को दर्शन देते थे

⁃ उस खिड़की का जहाँ से श्रीनाथजी व्रज वासी को दर्शन देते थे बिलछु कुंड पर; और बिलछु कुंड पर अपनी ही युगल स्वरूप लीला का अनुभव करते थे

⁃ शैया मंदिर में श्री महा प्रभुजी की १५वीं बैठकजी के दर्शन कीजिए

⁃ उस शैया मंदिर का दर्शन कीजिए जहाँ श्री महाप्रभुजी श्री नवनीत प्रियाजी के साथ शयन करते हैं

⁃ दर्शन कीजिए वह सुरंग का जो सीधी नाथद्वारा जाती है, जहाँ से कहते हैं श्रीनाथजी नाथद्वारा से श्री गोवर्धन आते जाते थे

🙏

जय श्रीनाथजी प्रभु

#ShreeNathjiBhakti, #Govardhan

‘Live’ Holi varta with ShreeNathji Thakurjee

‘Live’ Holi varta with ShreeNathji
2.03.2018

अदृश्यमान होली के रंग, श्रीजी के संग

 

कुछ दिनों से हम (गुरुश्री, श्रीजी और मैं) गिरिराज जी पर हैं। होली दहन के दिन श्रीजी कुछ समय हमारे ही साथ खेल रहे थे। फिर bye bye कर के चले गए, ये कह कर की होली का दहन है, उन्हें कुछ ज़रूरी काम है।

मैं भी आज जल्दी सो गयी थी।
श्रीजी को याद करके, और गिरिराज जी को प्रणाम कर, जप करते करते आँख लग गयी।
अचानक ऐसा लगा जैसे की मैं गुलाल के ढेर में डूब रही हूँ। घबरा कर मेरे श्रीजी को ढूँढती हूँ, उन्हें आवाज़ देती हूँ. “देखो ना श्रीजी, चारों तरफ़ रंग ही रंग हो गया, गुलाल में कमर तक डूब गयी हूँ, निकलने की कोशिश करती हूँ तो और गहरी डूब जाती हूँ; अरे श्रीजी कहाँ हो, थोड़ी मदद करीए ना, इस गुलाल के ढेर से बाहर निकालो ना”।
श्रीजी की हँसती हुई गूँज सुनती है,
“अच्छा, अच्छा; मैं मदद करूँ? आभा शाहरा श्यामॉ, लो मेरा हाथ पकड़ो”
मैंने कस के हाथ पकड़ा और श्रीजी ने बाहर खींच लिया। लेकिन यह क्या! बाहर भी चारों तरफ़ गुलाल उड़ने लगा, और श्रीजी भी ग़ायब हो गए।

पुकारने पर श्रीजी की मधुर आवाज़ फिर सुनती है,
“आभा शाहरा श्यामॉ, शायद तू तो मानसिक भाव से रंग खेल रही है, यहाँ गुलाल है ही किधर, अदृश्यमान द्रश्य में खो कर स्वप्न देख रही है तू”।
“जिसके अंदर आभा फूलती(प्रकाश मान)हो, अद्रश्यमान प्रगट होती हो, तुझे होली के रंग (सप्त रंग) की कहाँ ज़रूरत है”।
“शुद्ध, सात्त्विक, प्रगटमान आभा है तू, मेरे रंगों में पूर्ण रूप से हमेशा रंगी रहती है, शुद्धि का रंग तुझ में भरा है; बाहरी रंग की ज़रूरत नहीं है तुझे।
जा अपने आनंद में रह, मेरे भाव की मस्ती के रंगों में हमेशा भरी रहेगी तू, भूल जा बाक़ी सब कैसे होली मनाते हैं।
देख चारों तरफ़ गोवर्धन पर रंग ही रंग भर दिए हैं लोगों ने, कोई बात नहीं।

तू अपनी मानसिक यात्रा में होली के रंग खेलते खेलते अब जाग जा”।

और मैं जाग गयी, देखा तो सुबह के चार बजे थे। जैसे की मेरी आदत है, मैंने जल्दी से श्रीजी के शब्द पुस्तक में लिख लिए।

बाद में गुरुश्री को यह वार्ता सुनाई। उन्हें भी बड़ा आनंद आया। उन ने श्रीजी से आज्ञा ली, फिर लेकर मुझे कहा की इसे और भक्तों के साथ share करूँ। आनंद को बाँटूँ।

इसलिए मेरे गुरुश्री और महा गुरुश्री की आज्ञा से आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर रही हूँ।

शब्द श्रीनाथजी प्रभु के ही हैं।

कुछ भूल हो गयी हो प्रस्तुत करने में तो क्षमा करें
जय हो प्रभु 🙏
(तस्वीर श्रीनाथजी मुखारविंद की है)

Holi being played at ShreeNathji Mukharwind, Jatipura – Shri Govardhan

Shri Gusainji Baithakji at Chandra Sarovar

Shri Gusainji Baithakji at Chandra Sarovar is called the Viprayog baithakji. It is the 6th Baithakji.

For six months Shri Gusainji had to stay here away from ShreeNathji.

ShreeNathji Mandir in Shri Govardhan is also visible from here.

You can hear details of this ShreeNathji varta from the present mukhiyaji in this video below.

 

ShreeNathji Mandir on Shri Govardhan is visible from here

View of ShreeNathji Mandir on Shri Govardhan from this Baithakji

Shri Gusainji Viprayog Baithakji at Chandra Sarovar

ShreeNathji was very attached to Shri Gusainji

Jai ShreeNathji Prabhu 🙏

What are Pushtimarg Baithaks?

Baithaks in Pushtimarg religion are pavitr places where Shri Vallabhachary, the founder of Pushtimarg, narrated the Pavitr granth Shrimad Bhagvadji Katha.

It was almost always under the Chonkar vraksh of a Vat vraksh with an adjacent Kund. (water body)

They are total 84 in number and spread all over the country.

Mahaprabhuji had circled the whole of India three times and done sthapna of these various Baithaks.

Each Baithak has its own particular Charitr (description).

Baithaks are holy places where there is no Idol or Chitr (Picture); seva is done of Gaddi (Seating).

There are several Baithaks of Shri Vitthalnathji Gusaiji also. Many are in the same place as Shri Vallabh Achary. Other’s located by themselves wherever he went and rested.

Jai ShreeNathji Prabhu 🙏

#Shreenathjibhakti #pushtimargbaithak

http://www.shreenathjibhakti.org